Wednesday 4 December 2013

POWER OF SHREE CHAKRA & YANTRA

भारतीय तंत्र साधना विज्ञान, जिन तीन प्रमुख स्तंभों पर स्थापित हैं, उसमें ‘यंत्र साधना’ का विशिष्ट महत्त्व है। जिस प्रकार से देवी-देवताओं की प्रतीकोपासना की जाती है और उसमें सन्निहित दिव्यताओं, प्रेरणाओं की अवधारणा की जाती है, उसी प्रकार ‘यंत्र’ भी किसी देवी या देवता के प्रतीक होते हैं। साधारणतः यन्त्र एक ज्यामितीय आकृति होती है जो अपने आप मे सबंधित देवशक्ति का निवास स्थान, उसके उपशक्ति और सहयोगी शक्तियों को समाहित किये होती है| यह बिन्दु, रेखाओं, वक्र रेखाओं, त्रिभुजों, वर्गों, वृत्तों और पद्मदलों को मिलाकर, अलग-अलग प्रकार से बनाये जाते हैं। इनपर अंकित रेखाओं, त्रिभुजों, वर्गों, वृत्तों और यहाँ तक कि कोण, अंश का विशिष्ट अर्थ होता है और यंत्रों में किसी कार्य की सफलता का गंभीर लक्ष्य भी निहित होते हैं।
यन्त्र शब्द " यम" धातु से बना है तथा समस्त प्रकार के भयों से त्राण कराने के कारण से ही यह यंत्र ,यह नाम दिया जाता हैं |

हमारे ऋषिवरों के अनुसार यंत्र अलौकिक एवं चमत्कारिक दिव्य शक्तियों के निवास-स्थान हैं। यन्त्र प्रायः स्वर्ण, चाँदी, ताँबा , स्फटिक एवं पारे जैसी उत्तम धातुओं पर बनाये जाते हैं। भोजपत्र पर भी उनका निर्माण किया जाता है। ये सभी पदार्थ एवं धातुएं विशिष्ट तरंगे उत्पन्न करने की सर्वाधिक क्षमता रखते हैं। उच्चस्तरीय साधनाओं में प्राय: इन्हीं से बने यंत्र प्रयुक्त होते हैं। यंत्र साधना से साधक यंत्र का ध्यान करते हुए स्वयं को ब्रहमांड जगत से जोड़ पाता है और ऐसी अवस्था में आता है कि ज्ञाता, ज्ञान एवं ज्ञेय एक रूप ही लगने लगते हैं।
सामान्य तौर पर, यंत्रों को यद्यपि मंत्रों से अलग माना जाता है लेकिन वास्तविकता यह है कि यंत्र यदि "शिवरूप हैं" तो मंत्र उनकी अंतर्निहित "शक्ति" है , जो इन्हें संचालित करती है और जीवन के सभी साध्यों की प्राप्ति का साधन बनती है।

*** यंत्रों के प्रकार
यन्त्र मुख्यतः दो प्रकार होते है--* भू पृष्ठ -जिसका नीचेवाला भाग या पीठ समतल भूमि पर हो। यह चपटा एवं द्वि आयाम , द्वि परिणाम होता है |* मेरु पृष्ठ -जिसकी पीठ या नीचेवाला भाग समतल भूमि पर नहीं, बल्कि अंडाकार उभरे हुए तल पर हो। यह पिरेमिड के आकार का होता है |
यद्यपि “गौरी यामल तंत्र” के अनुसार यन्त्र के वर्गीकरण में कुर्म पृष्ठ एवं पदम पृष्ठ, दो अन्य प्रकार के भी यन्त्र होतें हैं |

*** यंत्रों का आकृतियों से सम्बन्ध
यन्त्र पर खिंची गयी ज्यामिति आकृतियों का भी निश्चित अर्थ होता है वर्ग आकृति - वर्ग पृथ्वी का द्योतक हैं , * बिन्दु - बिन्दु विश्व का बीज है, * त्रिकोण - त्रिकोण प्रजननशील योनी का प्रतीक है। * वृत्त - वृत्त वायु तत्व का प्रतीक होता हैं ,* चतुष्कोण- चतुष्कोण आकाश की समग्रता का प्रतीक है। * उर्ध्वमुखी त्रिकोण- शिव तत्व का प्रतीक हैं, * अधोमुखी त्रिकोण- जल तत्व का प्रतीक होता है क्योंकि यह हमेशा नीचे कि ओर ही गति करता हैं |

*** यंत्रों के कार्यों के अनुसार वर्गीकरण

यंत्र ऊर्जा विज्ञान का एक शक्तिशाली माध्यम है | यंत्र तभी अपना कार्य करते हैं , जब इनको निर्माण करने वाला साधक श्रद्धा , विश्वास , मनोयोग एवं पवित्रता के साथ तथा नियमों की जानकारी प्राप्त करके करता है।
* शांतिकर्म यंत्र: यह वह यंत्र होते हैं जिनका उद्देश्य कल्याणकारी और शक्तिप्रद कार्यों के लिए किया जाता है। इससे किसी का अहित नहीं किया जा सकता है। इनका मूल प्रयोग रोग निवारण, ग्रह-पीड़ा से मुक्ति, दुःख, गरीबी के नाश हेतु, रोजगार आदि प्राप्त करने में किया जाता है ।
* स्तंभन यंत्र: आग, हवा, पानी, वाहन, व्यक्ति, पशुओं आदि से होने वाली हानि को रोकने के लिए इस प्रकार के यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग करने से उपरोक्त कारणों से आई हुई विपदाओं का स्तंभन किया जाता है अर्थात उन पर रोक लगाई जाती है।
* सम्मोहन यंत्र: ये यंत्र वह होते हैं जिनसे किसी वस्तु या मनुष्य को सम्मोहित किया जाता है।
* उच्चाटन यंत्र: ये यंत्र वह होते हैं जिनसे प्राणी में मानसिक अस्थिरता, भय, भ्रम, शंका और कार्य से विरत रहने का कार्य लिया जाता है। इन यंत्रों का प्रयोग वर्जित माना जाता है।
* वशीकरण हेतु यंत्र: इन यंत्रों के द्वारा प्राणियों, प्रकृति में उपस्थित तत्वों का वशीकरण किया जाता है। इनके प्रयोग से संबंधित व्यक्ति धारण करने वाले के निर्देशों, आदेशों का पालन करते हुए उसके अनुसार आचरण करने लगता है।
* आकर्षण हेतु यंत्र:- आकर्षण यंत्र के प्रयोग से दूरस्थ प्राणी को आकर्षित कर अपने पास बुलाया जाता है।
* विद्वेषण यंत्र: इन यंत्रों के माध्यम से प्राणियों में फूट पैदा करना, अलगाव कराना, शत्रुता आदि कराना होता है। इससे प्राणी की एकता, सुख, शक्ति, भक्ति को नष्ट करना होता है।
* मारणकर्म हेतु यंत्र: इन यंत्रों के द्वारा अभीष्ट प्राणी, पशु-पक्षी आदि की मृत्यु का कार्य लिया जाता है। यह सबसे घृणित यंत्र है।
* पौष्टिक कर्म हेतु यंत्र: किसी का भी अहित किये बिना साधक अपने सिद्ध यंत्रों से अन्य व्यक्तियों के लिए धन-धान्य, सुख सौभाग्य, यश, कीर्ति और मान-सम्मान की वृद्धि हेतु प्रयोग करता है, उन्हें पौष्टिक कर्म यंत्र कहते हैं।

*** यंत्र के कार्य करने के पीछे सिद्धांत एवं यंत्रों का महत्व
यंत्र देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनमें चमत्कारिक दिव्य शक्तियों का निवास होता है। जिस प्रकार मानव शरीर विशालकाय ब्रह्मांड का सूक्ष्म रूप है। उसी प्रकार विशालकाय ब्रह्मांड को सूक्ष्म रूप में अभिव्यक्त करने के लिये ये यंत्र बनाये जाते हैं। इन तीन सिद्धांतों के आधार पर संयुक्त रूप से कार्य करने पर यंत्रों की शक्ति तभी जागृत होती है जब यंत्रों की निष्ठापूर्वक और विधि-विधान से पूजा एवं प्राण प्रतिष्ठा की जाये | बिना प्राण-प्रतिष्ठा के यंत्र को पूजा स्थल पर भी नहीं रखा जाता है क्योंकि ऐसा करने से सकारात्मक प्रभाव के स्थान पर नकारात्मक प्रभाव होने लगते हैं। मनुष्य के शरीर में सात चक्र हैं, और ब्रम्हाण्ड के विभिन्न भागों में यंत्र अवस्थित हैं। शरीर के चक्रों और ब्रम्हाण्ड के यंत्रों के मध्य गहरा संबन्ध स्थापित होना ही तंत्र साधना है- जो चक्रों और यंत्रों पर ध्यान केन्द्रित करके ही प्राप्त किया जा सकता है।

इन यंत्रों को उनके स्थान अनुरूप पूजा स्थान, कार्यालय, दुकान, शिक्षास्थल इत्यादि में रखा जा सकता है | यंत्र रोज़ाना सुबह देखना शुभ होता है, और प्रतिदिन सुबह यंत्र के समक्ष पहले धूप या घी का दीपक जलाना चाहिए। यंत्र को रखने एवं उसकी पूजा करने से अध्यात्मिक शान्ति में वृद्धि होती है और साधना करने वालों को सुख-ऐश्वर्य , सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है।


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